Tuesday, February 17, 2009

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Sunday, February 15, 2009

ब्राह्मण स्वर्णकार समाज की उत्पत्ति का दोहा तथा भावार्थ

ब्राह्मण स्वर्णकार समाज की उत्पत्ति का दोहा :
(पिंगल काव्य से )
वामन त्रेता पक्ष चंद अक्षय तिथि रविवार !
तपो निष्ठ नव ऋषिथपे, ब्रह्म वंस औसार
भावार्थ :
त्रेता यूग में वामन संवत बाहेतरवा वर्ष अक्षय तिथि रविवार के दिन श्रीमाल नगर (भीनमाल ) सुं नव ऋषि वंश गोत्र से ब्राह्मण स्वर्णकार समाज की उत्पत्ति होती है ।
कथा :
त्रेता यूग में कनकासुर नाम का असुर था जो जहाँ भी ब्राह्मण वंश को देखता तब उनके वंश को ख़त्म कर देता । वह यज्ञ हवन को विध्वंश कर देता । तब वो ब्राह्मणों ने वह नगरी छोड़ी , उसमे से नव ऋषियों का वंश अरबुद गीरी गए वहां गौतम ऋषि का आश्रम था । गौतम ऋषि से याचना की की हमारी रक्षा करो तब गौतम ऋषि ने कहा कि भगवती की उपासना करो तब नव ऋषियों के वंश ने सुंधा पर्वत की पहाडियों में आकर
भगवती की उपासना की । माता शक्ति ने प्रसन्न हो कर वरदान दिया की जाओ ब्रह्म पुत्रों इस स्वर्ण कला से अपनी गृहस्थी धर्म चलाओ ( यानि स्वर्ण कला का वरदान दिया )।
यहाँ से नव ऋषियों की संतानों ने स्वर्ण कला अपनाई - तब एक अलग से समाज का उदय किया और सच्चिदानंदजी ब्रह्म राव को जाती इतिहास करक बनाया ।
ब्राह्मण स्वर्णकार समाज का इतिहास त्रेता युग में वामन संवत 72 वां वर्ष अक्षय तिथि रविवार से वंश वंशावली लिखनी आरम्भ हुई । जो दो युग तक वंश वंशावली लिखते रहे ।
फिर कलयुग के आरम्भ काल में वापस समाज खंड विखंड हुई जो 3500 वर्ष लगभग समाज खंड विखंड रही । कलयुग में दुबारा गौतम ऋषि का धर्म श्री जी के रूप में अवतार हुआ और धर्म श्रीजी ने ब्राह्मण स्वर्णकार समाज का पुनः गठन किया ।
विक्रम संवत राजायती 759 वैसाख सुदी 3 रविवार को 120 कन्या धर्म परनाकर 84 खापें नियुक्त की और सच्चीदा नन्द जी ब्रह्म राव के वंशज मान तोलावत राव को कुलगुरु थापन किया और 84 खापों के वंश वंशावली का इतिहास लिखवाना आरम्भ किया सो ब्रह्म राव मान तोलावत के वंशज आज दिन तक वंशावली लिखते है और सुनाते है ।
लेकिन दान दक्षिणा कम मिलने की वजह से मान तोलावत राव के वंशजो ने दूसरा धंधा अपना लिया है और कुछ वंशज आज भी शहरों में घूमकर वंशावली का व्याखान सुनाते है ।
दोहा जाती हित :
जीवत जाती वह जगत , जिनरो बहे इतिहास !
उनरे पहली वह मुवा , जो गौरवता नाश !!
जिनको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है !
वह नर नही नर पशु है और मृतक समान है !!
ब्राह्मण स्वर्णकार समाज की उत्पत्ति का उल्लेख ब्राह्मण स्वर्णकार समाज के राव मान तोलावत की बही से लिया गया है ,जो सही है । आज मिति संवत 2065 माघ बदी 9 वार बुधवार तारीख 04/02/2009 ने लिखते :-
राव विजय दान हरिचन्द्र बागोरा
पता :
हरिचन्द्र पुत्र बाबुलालजी राव
मु.पो -मजाल
वाया - समदडी
जिला - बाड़मेर (राज)
मोबाइल - 9784709124 , 9351755994

समाज की उत्पत्ति का उल्लेख

:श्री कुल देवी माता नमः :
श्री सच्चीदा नंदजी ब्रह्म राव द्वारा ब्राह्मण स्वर्णकार समाज की उत्पत्ति का उल्लेख :
काव्य रचना में :
प्रथम ब्रह्म परमाण, ब्रह्मं मनु भणीजे !
मनु तना मारिश , गुण कश्यप गणीजे !!
सौ कश्यप कुल चार , ब्रह्म क्षत्रि दोई भाई !
वसे तीसरो वैश्य चौथा कुल शुद्र समाई !!
चार वरण कश्यप तना , काम सार नोखा करी !
श्रवण सीत दई साम्भलो धड़ाबंध वात कवी ब्रह्मराव कई !!